भोपाल। एक नाकारात्मक विचार दस नकारात्मक विचारों को निमंत्रण देता है। आप किसी की 10 बुराईयां बता सकते हो पर एक अच्छाई बताने में समय लगता है। किसी को सुधारने तब निकलना जब खुद में कोई कमी न हो। जिसका अपने मन, दिमाग पर नियंत्रण हो वह दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति है।
यह बात युवाओं की आइकॉन, मोटिवेशनल स्पीकर और भागवताचार्य जया किशोरी ने भेल दशहरा मैदान पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा में कही। दूसरे दिन की कथा राधे-राधे राधे गोविंद राधे की भजनों से शुरुआत की। किशोरी जी ने कहा कि श्रवण, चिंतन और मनन ये तीन शब्द आपकी जिंदगी बदल देंगे।
धुंधकारी की कथा सुनाते हुए बताया कि-
इसके बाद धुंधकारी की कथा सुनाते हुए बताया कि दक्षिण भारत की तुंगभद्रा नदी के तट पर एक नगर में आत्मदेव नामक एक व्यक्ति रहता था, जो सभी वेदों में पारंगत था। उसकी पत्नी का नाम धुन्धुली था। धुन्धुली स्वभाव से क्रूर और झगड़ालू थी। घर में सब प्रकार का सुख था, वह व्यक्ति अपनी पत्नी से तो दुखी था ही साथ ही साथ उसे कोई संतान का सुख भी नहीं था। वह चिंता में रहता था कि उम्र ढल गई तो फिर संतान का मुख देखने को नहीं मिलेगा।
यह सब सोचकर उसने बड़े दुखी मन से अपने प्राण त्यागने के लिए वह वन चला गया। वन में एक तालाब में कूदने ही वाला था कि एक संयासी ने पीछे से पकड़ लिया और कारण पूछा। इस पर आत्मदेव ने कहा, ऋषिवर मैं संतान के लिए इतना दुखी हो गया हूं कि मुझे अब अपना जीवन निष्फल लगता है।
मैंने जिस गाय को पाल रखा है वह भी बांझ है। इस पर संत कहते हैं कि तुम यह फल लो और इसे अपनी पत्नी को खिला देना, इससे उसके एक पुत्र होगा। आत्मदेव वह फल लाकर अपनी पत्नी को दे देते हैं, इस पर वक काफी तर्क कुतर्क करती है पर आत्मदेव के कहने पर वह फल रख लेती है, पर खाती नहीं है।
एक दिन उसकी बहन उसके घर आती है, जिसे वह सारा किस्सा सुनाती है। बहन उससे कहती है कि मेरे पेट में बच्चा है, प्रसव होने पर वह बालक मैं तुम्हे दे दूंगी, तब तक तुम हमारे घर चल के रहो और बता दो कि बच्चा वहीं होगा और तू ये फल गाय को खिला दे। आत्मदेव की पत्नी अपनी बहन की बात मानकर ऐसा ही करती है। उस फल को वह गाय की टोकरी में डाल देती है।
नौ महीने बाद बहन को बच्चा होने पर वह उसे धुन्धुली को दे दिया। पुत्र हुआ है यह सुनकर आत्मदेव को बड़ा आनंद हुआ। धुन्धुली ने अपने बच्चे का नाम धुंधकारी रखा। उधर गाय को भी बच्चा हुआ लेकिन वह मनुष्य जैसा ही था पर उसके कान गाय जैसे थे। इसलिए उनका नाम गोकर्ण रखा।
गोकर्ण बड़ा होकर विद्वान पंडित और ज्ञानी निकलता है, जबकि धुंधकारी दुष्ट, नशेड़ी और क्रोधी, चोर, व्याभिचारी निकलता है। बाद में धुन्धली को धुंधकारी सताने लगता है और वह आत्महत्या कर लेती है। इसके बाद धुंधकारी के मुख में दहकते अंगारे डालकर उसकी हत्या कर दी जाती है।
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मरने के बाद प्रेत बन जाता है धुंधकारी-
मरने के बाद धुंधकारी प्रेत बन जाता है। एक दिन उसका भाई गोकर्ण सो रहे होते हैं, तभी धुंधकारी आवाज लगाते हुए रोने लगता है। इस पर गोकर्ण पूछते हैं कि तुम कौन हो। इस पर धुंधकारी कहता है, मैं तुम्हारा भाई हूं। प्रेत-योनी में पड़ा हूं, तुम दया करके मुझे इस योनी से छुड़ाओ।
इस पर गोकर्ण कहते हैं कि मैंने तुम्हारे लिए विधि पूर्वक श्राद्ध किया फिर भी तुम प्रेतयोनी से मुक्त कैसे नहीं हुए, मैं कुछ और उपाय करता हूं। कई उपाय करने के बाद भी जब कुछ नहीं सूझा तो अंत में वह सूर्येदेव से पूछते हैं तो वे कहते हैं कि श्रीमद्भागवत कथा सुनने से इसकी मुक्ति हो सकती है।
इसलिए तुम सप्ताह पारायण करो। इस दौरान भारी भीड़ के साथ वह प्रेत भी वहां आ पहुंचा। इधर-उधर स्थान ढूंढने पर उसकी दृष्टि एक सीधे रखे हुए सात गांठ के बांस पर पड़ी तो वह वायु रूप से उसमें जाकर बैठ गया।
जब शाम को कथा को विश्राम दिया गया, तो बांस की एक गांठ फट गई, इसी प्रकार सात दिनो में सातों गांठे फट गई और बारह स्कंद सुनने से पवित्र होकर धुंधकारी एक दिव्य रूप धारण करके सामने खड़ा हो गया। उसने भाई को प्रणाम किया तभी बैकुण्ठवासी पार्षदों के सहित एक विमान उतरा। सबके देखते ही धुंधकारी विमान पर चढ़ गए।
सुनाई भगवान के 24 अवतारों की कथा-
इसके बाद श्रमद् भागवत कथा में भगवान के 24 अवतारों का वर्णन करते हुए कहा कि यही एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान के सभी अवतारों का वर्णन है। इसके बाद की कथा में अश्वथामा द्वारा पांडवों के पाच पुत्रों की हत्या करना, दुर्योधन की मृत्यु, पांडवों द्वारा अश्वथामा को अपमानित करते हुए उसके मस्तक से मणि निकालने उसे बालों को काट दिया जाता है। किशोरी जी ने आगे की कथा में बताया कि अमपान का बदला लेने अश्वथामा उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे पर ब्रह्मास्त्र से हमला कर देते हैं। इस पर भगवान श्रीकृष्ण उत्तरा के गर्भ में जाकर सुरक्षा घेरा बना देते हैं।
नंदी पर सवार होकर भूत पिशाचों साथ पार्वती को ब्याहने निकले भोलेनाथ-
अंत में जया किशोरी जी ने भगवान भोलेनाथ और माता-पार्वती के विवाह की कथा सुनाई। इस दौरान पार्वती जी को उनकी सखियां कथा मंच पर लेकर आई और हल्दी, कुमकुम लगाया गया। वहीं कथा पांडाल से भोलेनाथ नंदी पर सवार होकर डीजे ढोल की थाप पर नाचते गाते भूत-पिशाचों की टोली के साथ माता पार्वती को ब्याहने पहुंचे।
कथा समापन के बाद प्रसादी का वितरण किया गया। सोमवार को कथा सुनने महापौर मालती राय, नगर निगम अध्यक्ष किशन सूर्यवंशी, महेश मालवीय, दीपक गुप्ता सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। कथा दोपहर दो बजे से शुरू की जाएगी।